मेरे साख-ऐ-दयार में तेरे नज़्म अब भी जिंदा हैं
कभी इधर से गुजरो तो फिर वही गीत गाना।
फलक के सितारे तेरे शय को सलाम करते हैं
मेरी तो तुम रूह हो, खुद से जुदा करूं कैसे।
जिसके मोह ने तुमको कभी बेघर किया होगा
उसी के प्रेम ने मन्नू अभी तक जिंदगी बख्शी ।
कहा था दरिया मिलती है एक रोज़ किनारे पर
जहां के पार की दुनिया हमारा आशियां होगा ।
अगर पलटकर गिर जाऊं, तुम कंधे पर उठा लेना
बहुत मुश्किल है चलकर दरिया पार कर जाना।
कभी इधर से गुजरो तो फिर वही गीत गाना।
फलक के सितारे तेरे शय को सलाम करते हैं
मेरी तो तुम रूह हो, खुद से जुदा करूं कैसे।
जिसके मोह ने तुमको कभी बेघर किया होगा
उसी के प्रेम ने मन्नू अभी तक जिंदगी बख्शी ।
कहा था दरिया मिलती है एक रोज़ किनारे पर
जहां के पार की दुनिया हमारा आशियां होगा ।
अगर पलटकर गिर जाऊं, तुम कंधे पर उठा लेना
बहुत मुश्किल है चलकर दरिया पार कर जाना।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
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