Saturday, August 31, 2019

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या
ये हसरतों की दुनिया
ये नफरतों का बादल
उधार की ये दौलत
ये कश्मकश के लम्हे
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या
ये कागजों में उलझी
ये मौन में ही सिमटी
साये से बात करती
ये उलझे उलझे रिश्ते
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या।
ये घूमता समय का पहिया
ये बेबसी का आलम
बेजान सी जवानी
ये बारिश का कहर होना
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या।
ये खिले-खिले से चेहरे
ये हंसी खुशी की बारिश
चुपचाप मुस्कुराना
ये तालीम की दुहाई
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या।
ये तेरा मेरा गाना
ये जहर का दोना
अंदेशों का शहर अपना
ये सुबकती सर्द रातें
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या।
ये आंखों का लाल होना
ये करवटों का पहरा
गिनती में सबका जीना
ये कांच-सा दहलना
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या।
ये बेपनाह चाहत
ये झुकी झुकी निगाहें
तेरे घर से झुक के जाना
ये आंगन का चांद होना
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या।

                         ..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा

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