Saturday, September 15, 2018

ऐसा होता है आत्मिक प्रेम

कतिपय प्रेम कहानियाँ
पूर्ण विराम के अपराह्न से
अपनी जीवन यात्रा
प्रारम्भ करती हैं ।

मौन ! असहज अभिव्यक्ति,
काल के गाल में कबलित,
समय के पाश में जीवित,
जागृत होती है
जिजीविषा की लालसा से
अनंत के स्पर्श से ;
अनाहत मन पिघलकर
मोम बन जाता है।

मौन की दरिया
एकाकी पथ पर
चलते चलते
समंदर बन जाती है ।

ऐसा होता है
आत्मिक प्रेम
जिसकी परिभाषा
शब्दों, व्यंजनाओं, विन्यासों
और मन-मुदित आह्वलाद की
छाया से परे है ।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
                     

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