Monday, August 13, 2012

कल के सपनों को जीने के लिये


ऎसा लगता है
सुखे झरने में
जल की धार बहाने के लिये
आसमान में वो
कृत्रिम बादल बनाने लगे हैं ।
तो हम क्यों रुकें ?
किसके लिये रुकें ?
हम भी एक रफ्तार की उम्मीद के साथ
कल के सपनों को जीने के लिये
आँखें खोलकर
आसमान के तारों को
इन्द्रधनुष का रंग बताने लगे हैं।
कि तुम भी मेरे पास आओ
कुछ रंग उधार ले जाओ
जिसको हमने बारिश  की बूँदों से उठाकर
अपने सीने से लगा रखा है ।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा

2 comments:

  1. Very thought provoking poem.

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    1. Dear Sir
      I acknowledge your sincerity and gratitude to visit the pages of my blog.
      Regards

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M K Mishra