Friday, July 26, 2019

एक प्रार्थना

मोह, माया, विद्रूप काया
राग, विराग, लब्ध वीतराग
सब समर्पित है
तुम्हारी चरणों में !
बस एक बार माँ
मुझे पुकार लो !
अपने पास बुला लो,
अपनी छाँव में बिठा लो,
मेरा तन, मेरा मन
आकुल है, तुम्हारे आँचल की
शीतलता के लिए !
इस काया की भित्ति
अब मैली और
कषाय हो चली है ।
आत्मा छटपटाती है,
माया और काया की जंजीर
तोडना चाहती है ।

हे माँ !
मुझे बुद्धि दो,
मुझे ज्ञान दो,
मुझे दृष्टि दो ।
इस संसार की दग्धता का आभास
मैं मौन से कर सकूँ ।
मैं आत्म साधना कर सकूँ
मैं वैराग्य जीवन जी सकूँ
मैं निर्मलता ओढ़ सकूँ
मैं निर्लिप्त कर्म साधना कर सकूँ ।
प्रायश्चित से
इस निराकार आत्मा को
शुद्ध कर दो माँ  ।
पुनः इसे आपकी शरण में
शीघ्र लौटना है ।
हे माँ ! मुझे शक्ति दो !
कि अंतर्द्वंद्व के
कोलाहल को शांत कर सकूँ
कि जिजीविषा की तृष्णा को
शमित कर सकूँ
कि मानव निर्माण में अपना
सर्वस्व समर्पित कर सकूं ।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा