राख पलटते रहे कि कोई अदद ख्वाब मिले
उंगलियां सरकने लगी, सोई चिंगारी देखकर।
गुमसुम अकेले पेड़ ने आज हंस के मुझसे बात की
अर्से बाद आदमी ने आज अदब से चलना सीखा।
जरूरी नहीं कि हर कहानी बोल के बातें करे
अक्सर इशारों में कल की निशानी छोड़ जाते हैं
बढ़ो रुक-रुक के सही कदम-दर-कदम तुम भी
हम अकेले अब नहीं इक कारवां बनता चले।
शहर में खोया हुआ आज आदमी है बेखबर
सब अकेले भागते हैं गोया मुक्कदर ढूंढने।
एक गुनगुनी धूप की मुद्दत से मुझे तलाश थी
तुम ही पलट के हंस दो, सूरज निकल आएगा।
ताज पहने हो अकेले तालियों की तलाश में
आवाज दो सबको बुलाओ देखो कमाल भीड़ का।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
उंगलियां सरकने लगी, सोई चिंगारी देखकर।
गुमसुम अकेले पेड़ ने आज हंस के मुझसे बात की
अर्से बाद आदमी ने आज अदब से चलना सीखा।
जरूरी नहीं कि हर कहानी बोल के बातें करे
अक्सर इशारों में कल की निशानी छोड़ जाते हैं
बढ़ो रुक-रुक के सही कदम-दर-कदम तुम भी
हम अकेले अब नहीं इक कारवां बनता चले।
शहर में खोया हुआ आज आदमी है बेखबर
सब अकेले भागते हैं गोया मुक्कदर ढूंढने।
एक गुनगुनी धूप की मुद्दत से मुझे तलाश थी
तुम ही पलट के हंस दो, सूरज निकल आएगा।
ताज पहने हो अकेले तालियों की तलाश में
आवाज दो सबको बुलाओ देखो कमाल भीड़ का।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
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M K Mishra