Sunday, September 08, 2019

जिंदगी से कोई गिला नहीं

तुम अकेले फिर खड़े हो भीड़ में खोए नहीं
मशाल-ए-जश्न में कुछ तो धुआं हुआ होगा।

शहर की रोशनी बारिश में नहा के निकली है
कल अंधेरी रात में चुपचाप कुछ हुआ होगा।

उदास पन्नों पर कुछ गज़लें रख के सो गया
रात बस चलती रही खामोश कुछ हुआ होगा।

आसां नहीं है शहर में मुफलिस कोई आदमी मिले
चेहरे वो नहीं आदमी कहें इनको नशा हुआ होगा।

आंखे खुलती नहीं अचानक रात के आगोश से
सच अभी भी सोता है ख्वाब में कुछ हुआ होगा।

दरकते रिश्ते गांव के सुकून की अब हवा नहीं
शहर खुश है दुआओं में मुकद्दस कुछ हुआ होगा।

जंग जारी है अभी तेरे कोई सपने सजाता मैं
उम्मीद लिए चलता हूं नया कुछ हुआ होगा।

जिंदगी से कोई गिला नहीं जो मिला वो महफूज़ है
पत्थर घिसकर बुत बनाने का भरम हुआ होगा।

                       ..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा

No comments:

Post a Comment

Dear Readers
Your comments/reviews are most honourably solicited. It is you whose fervent blinking keep me lively!

Regards

M K Mishra