न जाने कौन हमारी खुशी की चुपचाप
दुआएँ करता है
असर इतना कि अश्कों को भी हँसी-खुशी
से भरता है
न जाने कौन हमारे क्रंदन को भी अपनी दौलत कहता
है
असर इतना कि चिथड़ों में भी शहंशाह-सा रहता है
न जाने कौन राह के कांटो को भी चुपके-चुपके चुनता
है
असर इतना कि झंझावात में स्वप्न हिंडोले बुनता है
न जाने कौन हमारे पन्नों में रोज नया रंग भरता है
असर इतना कि जीवन ही अब इंद्रधनुषी लगता है
न
जाने कौन हमारे सपनों को एक कौतूहल-सा गढ़ता है
असर
इतना कि साँझ-सबेरे सूरज यहाँ भी चलता है
चल हमें भुलावा देकर ले चल, चाँद जहाँ पर आता
है
जीवन उठता-गिरता पथ पर नीरव चैन न पाता है
मन की अभिलाषा गीत बन गयी नयन बन गये हैं अनिमेष
कल की उद्वेलना आज सो गयी और नहीं कुछ रहा शेष
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
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M K Mishra