हम दरिया हैं तूफ़ान से हरदम हैं रहगुजर
बिखर जाते हैं हवा में देवदार की तरह।
कहां किसी का छूटता है अपनों से वास्ता
गोया चला था साथ वो दिलदार की तरह।
किस्मत मेरे घर आती है चुपके से इस कदर
बच्चों से फैले अर्श पर रोशनाई की तरह।
किसी के वास्ते मन्नू कहां रुकती है ये दुनिया
तुम तो ठहर जा सुबह तक तन्हाई की तरह।
मेरे किरदार को तू भी पहन के देख तो सही
किसी गरीब के घर में ढकी रजाई की तरह।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
बिखर जाते हैं हवा में देवदार की तरह।
कहां किसी का छूटता है अपनों से वास्ता
गोया चला था साथ वो दिलदार की तरह।
किस्मत मेरे घर आती है चुपके से इस कदर
बच्चों से फैले अर्श पर रोशनाई की तरह।
किसी के वास्ते मन्नू कहां रुकती है ये दुनिया
तुम तो ठहर जा सुबह तक तन्हाई की तरह।
मेरे किरदार को तू भी पहन के देख तो सही
किसी गरीब के घर में ढकी रजाई की तरह।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा