आज भीख मांगने वाली एक नन्हीं बाला को इलाहाबाद के यमुना नदी में एक रूपये का सिक्का बड़ी श्रद्धा से डालते देखा।
बात ये नहीं कि उसने नदी में सिक्का डाला।
बात है, बड़ी जतन से जमा किया धन का मोह त्याग !
तिल-तिल मरना पड़ता है एक-एक सिक्के के लिए।
अपना जमीर मारना पड़ता है दूसरों के आगे हाथ फैलाने में।
और फिर भी माया का दान बिना प्रतिदान की इच्छा के? निःसंदेह स्पृश्य है!
हर क्षण हम जिसे जोडते जाने की तमन्ना में समग्र सांसारिक कुचक्रों का जाल बुनते जाते हैं, उसका त्याग !
हे ईश! तुमने इतनी शालीनता उसकी चुप्पी में क्यों भर दी है?
उसका जटिल मौन उद्वेलित करता है।
काश! हम स्वनाम धन्य जन उसकी विराट सहनशीलता को भावो से स्पशॆ कर पाते ?
अद्भुत है भारत तेरी विरासत!
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
बात ये नहीं कि उसने नदी में सिक्का डाला।
बात है, बड़ी जतन से जमा किया धन का मोह त्याग !
तिल-तिल मरना पड़ता है एक-एक सिक्के के लिए।
अपना जमीर मारना पड़ता है दूसरों के आगे हाथ फैलाने में।
और फिर भी माया का दान बिना प्रतिदान की इच्छा के? निःसंदेह स्पृश्य है!
हर क्षण हम जिसे जोडते जाने की तमन्ना में समग्र सांसारिक कुचक्रों का जाल बुनते जाते हैं, उसका त्याग !
हे ईश! तुमने इतनी शालीनता उसकी चुप्पी में क्यों भर दी है?
उसका जटिल मौन उद्वेलित करता है।
काश! हम स्वनाम धन्य जन उसकी विराट सहनशीलता को भावो से स्पशॆ कर पाते ?
अद्भुत है भारत तेरी विरासत!
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा